अज़ब क़ातिब है इन्साँ में फ़रावानी नहीं भरता

अज़ब क़ातिब है इन्साँ

अज़ब क़ातिब है इन्साँ में फ़रावानी नहीं भरता दगाबाज़ी तो भरता है वफ़ादारी नहीं भरता, भरोसा था तभी