सुरखाब क्या ख़रीदे असबाब क्या ख़रीदे
फ़ितरत फ़कीर जिसकी अलक़ाब क्या ख़रीदे,
ले जा इन्हें उठा कर सौदा नहीं है मुमकिन
जिस आँख में न नींदे वो ख़्वाब क्या ख़रीदे,
बेकार अश्क ले कर सहरा गया था मज़नू
जो बूँद को तरसता सैलाब क्या ख़रीदे,
बाज़ार है ये दुनियाँ हर शय पे जी ये आये
एक कशमकश अज़ब है बेताब क्या ख़रीदे,
माना ज़मीं है तेरी पर सोच ले तू नादाँ
जब आसमां न तेरा माहताब क्या ख़रीदे,
आदत, चलन, तरीक़े ये इश्क़ खाक़ बदले
ज़ाहिल हो जो अज़ल का आदाब क्या ख़रीदे,
ऐ इन्सान समन्दरो की क्या मिन्नतें करे तू
साहिल तुझे डुबोये गर्दाब क्या ख़रीदे..!!
~अब्रक़