सुबह तक मैं सोचता हूँ शाम से
जी रहा है कौन मेरे नाम से,
शहर में सच बोलता फिरता हूँ मैं
लोग ख़ाइफ़ हैं मेरे अंजाम से,
रात भर जागेगा चौकीदार एक
और सब सो जाएँगे आराम से,
सौ बरस का हो गया मेरा मज़ार
अब नवाज़ा जाऊँगा इनआम से,
साथ लाऊँगा थकन बेकार की
घर से बाहर जा रहा हूँ काम से,
नाम ले उसका सफ़र आग़ाज़ कर
दूर रख दिल को ज़रा औहाम से,
ज़िंदगी की दौड़ में पीछे न था
रह गया वो सिर्फ़ दो एक गाम से..!!
~अमीर क़ज़लबाश