समझे वही इसको जो हो दीवाना किसी का
अकबर ये ग़ज़ल मेरी है अफ़साना किसी का,
गर शैख़ ओ बहरमन सुनें अफ़साना किसी का
माबद न रहे काबा ओ बुतख़ाना किसी का,
अल्लाह ने दी है जो तुम्हे चाँद सी सूरत
रौशन भी करो जाके सियहख़ाना किसी का,
अश्क आँखों में आ जाएँ एवज़ नींद के साहब
ऐसा भी किसी शब सुनो अफ़साना किसी का,
इशरत जो नहीं आती मेरे दिल में, न आए
हसरत ही से आबाद है वीराना किसी का,
करने जो नहीं देते बयां हालत ए दिल को
सुनिएगा लब ए ग़ौर से अफ़साना किसी का,
कोई न हुआ रूह का साथी दम ए आख़िर
काम आया न इस वक़्त में याराना किसी का,
हम जान से बेज़ार रहा करते हैं अकबर
जब से दिल ए बेताब है दीवाना किसी का..!!
~अकबर इलाहाबादी