सामने तू है लम्हा लम्हा मेरे…

सामने तू है लम्हा लम्हा मेरे
और ज़मीं आसमां की दूरी है,

कोई मंतक, कोई दलील नहीं
तू ज़रूरी तो बस ज़रूरी है,

जैसे क़िस्मत पे इख़्तियार नहीं
ये मुहब्बत भी ला शु’ऊरी है,

कौन सीखा है सिर्फ़ बातों से
सब को एक हादसा ज़रूरी है,

एक बस तू ही रही मेरी हसरत
बाक़ी हर आरज़ू तो पूरी है,

लिखते लिखते अरसा गुज़र गया
मगर दास्ताँ आज भी अधूरी है..!!

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