रुख से नक़ाब उनके जो हटती चली गई
चादर सी एक नूर की बिछती चली गई,
आये वो मेरे घर पे तो जाने ये क्या हुआ ?
हर एक चीज ख़ुद से निखरती चली गई,
गुज़र जिधर जिधर से मेरा प्यार दोस्तों
ख़ुशबू उधर हवाओं में घुलती चली गई,
आई बहार अबकी चमन में कुछ इस तरह
गुल की हर एक शाख़ लचकती चली गई,
तौक़ीर कर चुका था समंदर से दोस्ती
कश्ती भँवर से उसकी गुज़रती चली गई..!!