रवैये मार देते है ये लहज़े मार देते है…

रवैये मार देते है ये लहज़े मार देते है
वही जो जान से प्यारे हैं रिश्ते मार देते है,

कभी बरसो गुज़रने पर कही भी कुछ नहीं होता
कभी ऐसा भी होता है कि लम्हे मार देते है,

कभी मंज़िल पे जाने के निशाँ तक भी नहीं मिलते
जो रास्तो में भटक जाएँ तो रस्ते मार देते है,

कहानी खत्म होती है कभी अंज़ाम से पहले
अधूरे ना मुक़म्मल से ये किस्से मार देते है,

हजारो वार दुनियाँ के सहे जाते है हँस हँस के
मगर अपनों के ताने और शिकवे मार देते है,

मुझे अक्सर ये लगता है कि जैसे हूँ नहीं हूँ मैं
मुझे होने न होने के ये खदशे मार देते है,

कभी मरने से पहले भी बशर को मरना पड़ता है
यहाँ जीने के मिलते है जो सदमे मार देते है,

बहुत एहसान जताने से ताअल्लुक़ टूट जाता है
बहुत इसार ओ क़ुरबानी के जज़्बे मार देते है,

कभी तूफान की ज़द से भी सफिने बच निकलते है
कभी सालिम सफीनो को किनारे मार देते है,

वो हिस्सा काट डाला ज़हर का खादशा रहा जिस में
जो बाक़ी रह गए मुझ में वो हिस्से मार देते है,

जो आँखों में रहे सदा वही तो ख़्वाब अच्छे है
जिन्हें ताबीर मिल जाए वो सपने मार देते है..!!

Leave a Reply

error: Content is protected !!
%d bloggers like this: