पर्बत तेरे पहलू में अगर खाई नहीं है
काहे की बुलंदी जहाँ गहराई नहीं है,
अब कोई वहाँ इस लिए होता नहीं रुस्वा
कूचे में तेरे कोई तमाशाई नहीं है,
हज़रत जो रवादारी नज़र आप में आई
क्यों आप के बच्चों में नज़र आई नहीं है,
दुनिया ने तो उसमें भी कई नक़्स निकाले
तस्वीर जो मैंने अभी बनवाई नहीं है,
इस वास्ते भी रौशनी है बाइस ए वहशत
आँखों की चराग़ों से शनासाई नहीं है,
ख़ुद बाँट के आएँगे वहाँ अपनी सदा हम
जिस सम्त हवाओं ने ये पहुँचाई नहीं है,
शायद कि हर एक शख़्स को होती है मोहब्बत
और सब ही ये कहते हैं कि दानाई नहीं है,
लोगों से हसन कर के कई बार किनारा
देखा है किसी काम की तन्हाई नहीं है..!!
~एहतिशाम हसन