भुला दिया था जिस को एक शाम याद आ गया
भुला दिया था जिस को एक शाम याद आ गया ग़ज़ाल देख कर वो ख़ुश ख़िराम याद आ
भुला दिया था जिस को एक शाम याद आ गया ग़ज़ाल देख कर वो ख़ुश ख़िराम याद आ
सब की कहानी एक तरफ़ है मेरा क़िस्सा एक तरफ़ एक तरफ़ सैराब हैं सारे और मैं प्यासा
ज़ौक़ ए गुनाह ओ अज़्म ए पशेमाँ लिए हुए क्या क्या हुनर हैं हज़रत ए इंसाँ लिए हुए,
जुदाई रूह को जब इश्तिआल देती है ख़ुनुक हवा भी बदन को उबाल देती है, अगर हो वक़्त
फ़िराक़ ओ हिज्र के लम्हे जो टल गए होते हमारे ज़ेहन के ख़ाके बदल गए होते, वो मस्लहत
दिल है सहरा से कुछ उदास बहुत घर को वीराँ करूँ तो घास बहुत, रोब पड़ जाए इस
अब रहा क्या जो लुटाना रह गया ज़िंदगी का एक ताना रह गया, एक तअल्लुक़ जिन से था
एक लम्हा कि मिलें सारे ज़माने जिसमें एक नुक्ता सभी हिकमत के ख़ज़ाने जिसमें, दायरा जिसमें समा जाएँ
सूखी ज़मीं को याद के बादल भिगो गए पलकों को आज बीते हुए पल भिगो गए, आँसू फ़लक
जिसकी ख़ातिर मैने दुनिया की तरफ़ देखा न था वो मुझे यूँ छोड़ जाएगा कभी सोचा न था,