वक़्त का मारा हुआ इंसाँ रऊनत का शिकार
वक़्त का मारा हुआ इंसाँ रऊनत का शिकार जिस की मेहनत का नतीजा अज़मत-ए-सरमाया-दार अस्ल में हिन्दोस्ताँ का
वक़्त का मारा हुआ इंसाँ रऊनत का शिकार जिस की मेहनत का नतीजा अज़मत-ए-सरमाया-दार अस्ल में हिन्दोस्ताँ का
रात कुछ तारीक भी है और कुछ रौशन भी है वक़्त के माथे पे शोख़ी भी है भोला
दीवाली के दीप जलाएँ आ जाओ रौशन रौशन गीत सुनाएँ आ जाओ गोशे गोशे में तज़ईन-ओ-ज़ेबाई साफ़ करें
जब से आई है दीपावली हर तरफ़ छाई है रौशनी हर जगह चाहतों के दिए शाम होते ही
जल रहे हैं दिए मुंडेरों पर हो रहा है करम अँधेरों पर तुम जो बन कर किरन किरन
हो रहे हैं रात के दियों के हर सू एहतिमाम सुब्ह से जल्वा नुमा है आज दीवाली की
छुप गया ख़ुर्शीद ए ताबाँ आई दीवाली की शाम हर तरफ़ जश्न ए चराग़ाँ का है कैसा एहतिमाम
घर की क़िस्मत जगी घर में आए सजन ऐसे महके बदन जैसे चंदन का बन आज धरती पे
सुनो मादर-ए-हिन्द के नौ-निहालो सदाक़त पे गर्दन कटा लेने वालो उठो ख़्वाब-ए-ग़फ़लत मिटा लो मिटा लो कमर-बस्ता हो
गो ख़ाक हो चुका है हिन्दोस्ताँ हमारा फिर भी है कुल जहाँ में पल्ला गराँ हमारा मुँह तक