दिल पर जो ज़ख़्म हैं वो दिखाएँ किसी को क्या
दिल पर जो ज़ख़्म हैं वो दिखाएँ किसी को क्या अपना शरीक ए दर्द बनाएँ किसी को क्या
दिल पर जो ज़ख़्म हैं वो दिखाएँ किसी को क्या अपना शरीक ए दर्द बनाएँ किसी को क्या
अपनों ने वो रंज दिए हैं बेगाने याद आते हैं देख के उस बस्ती की हालत वीराने याद
वतन को कुछ नहीं ख़तरा निज़ाम ए ज़र है ख़तरे में हक़ीक़त में जो रहज़न है वही रहबर
हुजूम देख के रस्ता नहीं बदलते हम किसी के डर से तक़ाज़ा नहीं बदलते हम, हज़ार ज़ेर ए
भुला भी दे उसे जो बात हो गई प्यारे नए चराग़ जला रात हो गई प्यारे, तेरी निगाह
और सब भूल गए हर्फ़ ए सदाक़त लिखना रह गया काम हमारा ही बग़ावत लिखना, लाख कहते रहें
दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है दोस्तों ने भी क्या कमी की है, ख़ामुशी पर हैं लोग ज़ेर
शेर से शाइरी से डरते हैं कम नज़र रौशनी से डरते हैं, लोग डरते हैं दुश्मनी से तेरी
दिल की बात लबों पर ला कर अब तक हम दुख सहते हैं हम ने सुना था इस
बेवफ़ा तुम को भुलाने में तकल्लुफ़ कैसा आइना सच का दिखाने में तकल्लुफ़ कैसा तीरगी घर की मिटाने