रंग ए नफ़रत तेरे दिल से उतरता है…

rang e nafrat tere

रंग ए नफ़रत तेरे दिल से उतरता है कभी ? एक रवैया है मुरव्वत, उसे बरता है कभी

यहाँ मरने की दुआएँ क्यूँ मांगूँ ?

yahan marne ki duaayen

यहाँ मरने की दुआएँ क्यूँ मांगूँ ? यहाँ जीने की तमन्ना कौन करे ? ये दुनियाँ हो या

मैं जब भी कोई अछूता कलाम लिखता हूँ

main jab bhi koi achhuta

मैं जब भी कोई अछूता कलाम लिखता हूँ तो पहले एक गज़ल तेरे नाम लिखता हूँ, बदन की

काम उसके सारे ही सय्याद वाले है…

kaam uske saare hi

काम उसके सारे ही सय्याद वाले है मगर मैं उसे बहेलिया नहीं लिखता सर्दियाँ जितनी हो सब सह

हमसे तो किसी काम की बुनियाद न होवे

hamse to kisi kaam ki

हम से तो किसी काम की बुनियाद न होवे जब तक कि उधर ही से कुछ इमदाद न

हम न निकहत हैं न गुल हैं जो महकते…

ham nikhat hai na gul

हम न निकहत हैं न गुल हैं जो महकते जावें आग की तरह जिधर जावें दहकते जावें, ऐ

अपने घर की चारदीवारी में अब…

apne ghar ki chaardeewari

अपने घर की चारदीवारी में अब लिहाफ़ में भी सिहरन होती है जिस दिन से किसी को गुर्बत

ज़िस्म क्या है ? रूह तक सब कुछ….

zism kya hai ruh tak sab kuch khulasa dekhiye

ज़िस्म क्या है ? रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिए आप भी इस भीड़ में घुस कर तमाशा

कुछ ग़म ए जानाँ कुछ ग़म ए दौराँ

कुछ ग़म ए जानाँ

कुछ ग़म ए जानाँ कुछ ग़म ए दौराँ दोनों मेरी ज़ात के नाम एक ग़ज़ल मंसूब है उससे

अँधेरा सफ़र है ख़बरदार रहना…

andhera safar hai khabardar

अँधेरा सफ़र है ख़बरदार रहना लुटेरा शहर है ख़बरदार रहना, गला काटतें है बड़ी सादगी से ये इनका