मैं खुश नसीबी हूँ तेरी मुझे भी रास है तू
मैं खुश नसीबी हूँ तेरी मुझे भी रास है तू तेरा लिबास हूँ मैं और मेरा लिबास है
मैं खुश नसीबी हूँ तेरी मुझे भी रास है तू तेरा लिबास हूँ मैं और मेरा लिबास है
बटे रहोगे तो अपना यूँही बहेगा लहू हुए न एक तो मंज़िल न बन सकेगा लहू, हो किस
कभी तो मेहरबाँ हो कर बुला लें ये महवश हम फ़क़ीरों की दुआ लें, न जाने फिर ये
ख़ूब आज़ादी ए सहाफ़त है नज़्म लिखने पे भी क़यामत है, दावा जम्हूरियत का है हर आन ये
झूटी ख़बरें घड़ने वाले झूटे शेर सुनाने वाले लोगो सब्र कि अपने किए की जल्द सज़ा हैं पाने
ये और बात तेरी गली में न आएँ हम लेकिन ये क्या कि शहर तेरा छोड़ जाएँ हम,
वही हालात हैं फ़क़ीरों के दिन फिरे हैं फ़क़त वज़ीरों के, अपना हल्क़ा है हल्क़ा ए ज़ंजीर और
फिर दिल से आ रही है सदा उस गली में चल शायद मिले ग़ज़ल का पता उस गली
कुछ लोग ख़यालों से चले जाएँ तो सोएँ बीते हुए दिन रात न याद आएँ तो सोएँ, चेहरे
इस शहर ए ख़राबी में ग़म ए इश्क़ के मारे ज़िंदा हैं यही बात बड़ी बात है प्यारे,