रिश्तों के जब तार उलझने लगते हैं
रिश्तों के जब तार उलझने लगते हैं आपस में घर बार उलझने लगते हैं, माज़ी …
रिश्तों के जब तार उलझने लगते हैं आपस में घर बार उलझने लगते हैं, माज़ी …
चमन में जब भी सबा को गुलाब पूछते हैं तुम्हारी आँख का अहवाल ख़्वाब पूछते …
हरिस दिल ने ज़माना कसीर बेचा है किसी ने जिस्म किसी ने ज़मीर बेचा है, …
असर उसको ज़रा नहीं होता रंज राहत फिज़ा नहीं होता, बेवफा कहने की शिकायत है …
बुलंद दर्ज़ा है दुनियाँ में माँ बाप का इनके जैसा तो कोई और प्यारा नहीं, …
शिक़स्त ए ज़र्फ़ को पिंदार ए रिंदाना नहीं कहते जो मांगे से मिले हम उसको …
मिलने का भी आख़िर कोई इम्कान बनाते मुश्किल थी अगर कोई तो आसान बनाते, रखते …
दिल दे कर संगदिल को ज़िन्दगी दुश्वार नहीं करना यूँ हर किसी से अपने इश्क़ …
सताते हो तुम मज़लूमों को सताओ मगर ये समझ के ज़रा ज़ुल्म ढहाओ मज़ालिम का …
तक़दीर की ग़र्दिश क्या कम थी उस पर ये क़यामत कर बैठे, बेताबी ए दिल …