नाक़ूस से ग़रज़ है न मतलब अज़ाँ से है

नाक़ूस से ग़रज़ है न मतलब अज़ाँ से है
मुझ को अगर है इश्क़ तो हिन्दोस्ताँ से है

तहज़ीब ए हिन्द का नहीं चश्मा अगर अज़ल
ये मौज ए रंग रंग फिर आई कहाँ से है

ज़र्रे में गर तड़प है तो इस अर्ज़ ए पाक से
सूरज में रौशनी है तो इस आसमाँ से है

है इस के दम से गर्मी ए हंगामा ए जहाँ
मग़रिब की सारी रौनक़ इसी एक दुकाँ से है..!!

~ज़फ़र अली ख़ाँ

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