मेरी आँखों के समुंदर में जलन कैसी है
आज फिर दिल को तड़पने की लगन कैसी है ?
अब किसी छत पे चराग़ों की क़तारें भी नहीं
अब तेरे शहर की गलियों में घुटन कैसी है ?
बर्फ़ के रूप में ढल जाएँगे सारे रिश्ते
मुझ से पूछो कि मोहब्बत की अगन कैसी है ?
मैं तेरे वस्ल की ख़्वाहिश को न मरने दूँगा
मौसम ए हिज्र के लहजे में थकन कैसी है ?
रेगज़ारों में जो बनती रही काँटों की रिदा
इस की मजबूर सी आँखों में करन कैसी है ?
मुझे मासूम सी लड़की पे तरस आता है
उसे देखो तो मोहब्बत में मगन कैसी है..!!
~वसी शाह
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