मैंने तो बहुत देखे अपने भी पराये भी
कुछ ज़िन्दगी भी देखी कुछ मौत के साये भी,
इस दिल में तुम्हे रखा था मैंने बड़े दिल से
पर तुमने मेरे दिल पर इल्ज़ाम लगाए भी,
मिल जाए ख़ुदा मुझसे ये इल्तज़ा रहेगी
शिकवे है बहुत उसके मुझसे तो बताये भी,
इन्सान की ज़न्नत में क़िस्मत न बदलती है
वो ख़ुद को मिटाए और वो ख़ुद को बनाये भी,
इस बुत से क़सम खाई उस बुत से रहम माँगा
हर बुत ने अपनी मुझे हर चाल दिखाई भी,
हर एक समय दिल में रंगते नसीम बाक़ी
वो ख़ुद को जलाये भी वो ख़ुद को बुझाए भी..!!
~नसीम गोरखपुरी