क्या शर्त ए मुहब्बत है, क्या शर्त ए ज़माना है !
आवाज़ भी ज़ख़्मी है मगर गीत भी गाना है
उस पार उतरने की उम्मीद बहुत कम है
कश्ती भी पुरानी है तूफां को भी आना है,
समझे या न समझे वो अंदाज़ ए मुहब्बत को
मक़सद आँखों से उसे हाल ए दिल सुनाना है,
भोली सी अदा कोई फिर इश्क़ की ज़िद्द पर है
फिर आग का दरिया है और डूब के जाना है..!!