कुछ अधूरी हसरतें अश्क ए रवाँ में बह गए
क्या कहें इस दिल की हालत, शिद्दत ए गम सह गए,
गुफ़्तगू में फूल झड़ते थे जिनके कभी होंठ से
यादों के कारवाँ अब ख़ार बन दिल में चुभ कर रह गए,
जब मिले हम से कभी एक अज़नबी की तरह
पर तिरछी निगाहों से वो मेरे दिल की कहानी कह गए,
यूँ तो वस्ल के हर लम्हे यादों के नग़मे बन गए
वही नग़मे अब घुट के सोंज़ ओ साज़ दिल में रह गए,
जिस दिल के आईने में सिर्फ़ उसका ही अक्स था
तोड़ डाला शीशा ए दिल, हम ये सितम भी सह गए,
दो क़दम ही दूर थे, मंज़िल को जाने क्या हुआ ?
फ़ासले बढ़ते गए दरमियाँ नक्श ए क़दम ही रह गए,
ख़्वाबो में सही दीदार तो हो जाता था रुखसार का
नींद अब आती ही नहीं, ख़्वाबो के महल भी ढह गए..!!