कोई सुनता ही नहीं किस को सुनाने लग जाएँ

कोई सुनता ही नहीं किस को सुनाने लग जाएँ
दर्द अगर उठे तो क्या शोर मचाने लग जाएँ,

भेद ऐसा कि गिरह जिस की तलब करती है उम्र
रम्ज़ ऐसा कि समझने में ज़माने लग जाएँ,

आ गया वो तो दिल ओ जान बिछे हैं हर सू
और नहीं आए तो क्या ख़ाक उड़ाने लग जाएँ,

तेरी आँखों की क़सम हम को ये मुमकिन ही नहीं
तू न हो और ये मंज़र भी सुहाने लग जाएँ,

वहशतें इतनी बढ़ा दे कि घरौंदे ढा दें
सब्ज़ शाख़ों से परिंदों को उड़ाने लग जाएँ,

ऐसा दारू हो रह ए इश्क़ से बाज़ आएँ क़दम
ऐसा चारा हो कि बस होश ठिकाने लग जाएँ..!!

~अकरम नक़्क़ाश

Leave a Reply