कोई समझेगा क्या राज़ ए गुलशन
जब तक उलझे न काँटों से दामन,
यक ब यक सामने आ न जाना
रुक न जाए कहीं दिल की धड़कन,
गुल तो गुल ख़ार तक चुन लिए हैं
फिर भी ख़ाली है गुलचीं का दामन,
कितनी आराइश ए आशियाना
टूट जाए न शाख़ ए नशेमन,
अज़्मत ए आशियाना बढ़ा दी
बर्क़ को दोस्त समझूँ कि दुश्मन,
उन गुलों से तो काँटे ही अच्छे
जिन से होती हो तौहीन ए गुलशन..!!
~फ़ना निज़ामी कानपुरी