किया हम ने जो उन से कुछ ख़िताब आहिस्ता आहिस्ता

किया हम ने जो उन से कुछ ख़िताब आहिस्ता आहिस्ता
उन्हों ने भी दिया हम को जवाब आहिस्ता आहिस्ता,

तसव्वुर में वो चेहरा रफ़्ता रफ़्ता इस तरह आए
कि जैसे आता है आँखों में ख़्वाब आहिस्ता आहिस्ता,

बुत ए ख़ामोश को जब मैं ने छेड़ा कुछ शरारत से
दिखाया उस ने भी कुछ इज़्तिराब आहिस्ता आहिस्ता,

तवज्जोह जब न दी हम ने बुज़ुर्गों की नसीहत पर
हुआ अपना भी फिर ख़ाना ख़राब आहिस्ता आहिस्ता,

वो ज़ोर ओ जब्र से सब दिल की बातें पूछ लेते हैं
मगर अपना वो देते हैं हिसाब आहिस्ता आहिस्ता,

दिल ए वीरान में इस तरह उतरी रौशनी साहिल
कि जूँ पूरब से निकले आफ़्ताब आहिस्ता आहिस्ता..!!

~राम चंद्र वर्मा साहिल

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