किसी से क्या कहे सुने अगर गुबार हो गए
हम ही हवा की ज़द में थे हम ही शिकार हो गए,
सियाह दश्त ख़ार से कहाँ दो चार हो गए
कम शौक पैरहन तमाम तार तार हो गए,
यहाँ जो दिल में दाग था वही तो एक चराग़ था
वो रात ऐसा गुल हुआ कि शर्मसार हो गए,
अज़ीज़ क्यूँ न जान से हो शिकस्त ए आईना हमें
वहाँ तो एक अक्स था यहाँ हज़ार हो गए,
हमें तो एक उम्र से पड़ी है अपनी जान की
अभी जो साहिलों पे थे कहाँ से पार हो गए..!!
~अहमद महफूज़