इस तरह मोहब्बत में दिल पे हुक्मरानी है
दिल नहीं मेरा गोया उनकी राजधानी है,
घास के घरौंदे से ज़ोर आज़माई क्या ?
आँधियाँ भी पगली हैं बर्क़ भी दिवानी है,
शायद उनके दामन ने पोंछ दीं मेरी आँखें
आज मेरे अश्कों का रंग ज़ाफ़रानी है,
पूछते हो क्या बाबा क्या हुआ दिल ए ज़िंदा
वो मेरा दिल ए ज़िंदा आज आँ जहानी है,
‘कैफ़’ तुझ को दुनिया ने क्या से क्या बना डाला
यार अब तेरे मुँह पर रंग है न पानी है..!!
~कैफ़ भोपाली