हर एक हज़ार में बस पाँच सात हैं…

हर एक हज़ार में बस पाँच सात हैं हम लोग
निसाब ए इश्क़ पे वाजिब ज़कात हैं हम लोग,

दबाओ में भी जमात कभी नहीं बदली
शुरू दिन से मोहब्बत के साथ हैं हम लोग,

जो सीखनी हो ज़बान ए सुकूत बिस्मिल्लाह
ख़मोशियों की मुकम्मल लुग़ात हैं हम लोग,

कहानियों के वो किरदार जो लिखे न गए
ख़बर से हज़्फ़ शुदा वाक़िआत हैं हम लोग,

ये इंतिज़ार हमें देख कर बनाया गया
ज़ुहूर ए हिज्र से पहले की बात हैं हम लोग,

किसी को रास्ता दे दें किसी को पानी न दें
कहीं पे नील कहीं पर फ़ुरात हैं हम लोग,

हमें जला के कोई शब गुज़ार सकता है
सड़क पे बिखरे हुए काग़ज़ात हैं हम लोग..!!

~उमैर नजमी

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