गुलों में रंग भरे बाद ए नौ बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले,
क़फ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो कहो
कहीं तो बहर ए ख़ुदा आज ज़िक्र ए यार चले,
कभी तो सुब्ह तेरे कुंज ए लब से हो आग़ाज़
कभी तो शब सर ए काकुल से मुश्कबार चले,
बड़ा है दर्द का रिश्ता ये दिल ग़रीब सही
तुम्हारे नाम पे आएँगे ग़मगुसार चले,
जो हम पे गुज़री सो गुज़री मगर शब ए हिज्राँ
हमारे अश्क तेरी आक़िबत सँवार चले,
हुज़ूर ए यार हुई दफ़्तर ए जुनूँ की तलब
गिरह में ले के गरेबाँ का तार तार चले,
मक़ाम फ़ैज़ कोई राह में जचा ही नहीं
जो कू ए यार से निकले तो सू ए दार चले..!!
~फ़ैज़ अहमद फ़ैज़