गुलों को रंग सितारों को रौशनी के लिए
ख़ुदा ने हुस्न दिया तुम को दिलबरी के लिए,
तुम्हारे रू ए मुनव्वर की ज़ौ में डूब गया
फ़लक पे चाँद जो निकला था हमसरी के लिए,
सनम हज़ारों नए पत्थरों के अंदर ही
तड़प रहे हैं अभी फ़न्न ए आज़री के लिए,
अरे ओ बर्क़ ए तपाँ फूँक दे नशेमन को
तरस रहा हूँ गुलिस्ताँ में रौशनी के लिए,
रह ए वफ़ा में मेरा कौन है जो हर सू से
ग़ुबार ए राह उठी है पयम्बरी के लिए..!!
~वहीद अर्शी