ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएँगे
रोएँगे बहुत लेकिन आँसू नहीं आएँगे,
कह देना समुंदर से हम ओस के मोती हैं
दरिया की तरह तुझ से मिलने नहीं आएँगे,
वो धूप के छप्पर हों या छाँव की दीवारें
अब जो भी उठाएँगे मिलजुल के उठाएँगे,
जब साथ न दे कोई आवाज़ हमें देना
हम फूल सही लेकिन पत्थर भी उठाएँगे..!!
~बशीर बद्र