दो जहाँ के हुस्न का अरमान आधा रह गया
इस सदी के शोर में इंसान आधा रह गया,
हर इबादत गाह से ऊँची हैं मिल की चिमनियाँ
शहर में हर शख़्स का ईमान आधा रह गया,
मैं तो घबराया हुआ था ये बहुत अच्छा हुआ
याद उन की आ गई तूफ़ान आधा रह गया,
फूल महके रंग छलके झील पर हम तुम मिले
बात है ये ख़्वाब की रूमान आधा रह गया,
तुम को आना था नहीं आए कहो मैं क्या करूँ ?
आसमाँ पर चाँद सा मेहमान आधा रह गया,
क्यूँ है इतनी तेज़ रौ बतला मेंरी उम्र ए रवाँ ?
ज़िंदगी की राह का सामान आधा रह गया,
मुख़्तसर सा लिख दिया असरार ने उनको जवाब
ख़त मिला पर आप का एहसान आधा रह गया..!!
~असरार अकबराबादी