दिलजलों से दिल्लगी अच्छी नहीं

दिलजलों से दिल्लगी अच्छी नहीं
रोने वालों से हँसी अच्छी नहीं,

मुँह बनाता है बुरा क्यूँ वक़्त ए वाज़
आज वाइज़ तू ने पी अच्छी नहीं,

ज़ुल्फ़ ए यार इतना न रख दिल से लगाओ
दोस्ती नादान की अच्छी नहीं,

बुतकदे से मयकदा अच्छा मेरा
बेख़ुदी अच्छी ख़ुदी अच्छी नहीं,

मुफ़लिसों की ज़िंदगी का ज़िक्र क्या
मुफ़्लिसी की मौत भी अच्छी नहीं,

इस क़दर खिंचती है क्यूँ ऐ ज़ुल्फ़ ए यार
ले के दिल इतनी कजी अच्छी नहीं,

आएँ मेरी बज़्म ए मातम में वो क्या
हाथ में मेंहदी रची अच्छी नहीं,

शैख़ को दे दो मय ए बेरंग ओ बू
उसकी क़िस्मत से खिंची अच्छी नहीं,

एक हसीं हो दिल के बहलाने को रोज़
रोज़ की ये दिल्लगी अच्छी नहीं,

ज़र्रा ज़र्रा आफ़ताब ए हश्र है
हश्र अच्छा वो गली अच्छी नहीं,

अहल ए महशर से न उलझो तुम रियाज़
हश्र में दीवानगी अच्छी नहीं..!!

~रियाज़ ख़ैराबादी

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