दिल के लूट जाने का इज़हार ज़रूरी तो नहीं

दिल के लूट जाने का इज़हार ज़रूरी तो नहीं
ये तमाशा सर ए बाज़ार ज़रूरी तो नहीं,

मुझे था इश्क़ तेरी रूह से और अब भी है
जिस्म से हो कोई सरोकार ये ज़रूरी तो नहीं,

मैं तुझे टूट के चाहूं ये तो मेरी फ़ितरत है
तू भी हो मेरा तलबगार ये ज़रूरी तो नहीं,

ऐ सितमगर कभी तो झाँक मेरी आँखों में
जुबां से ही हो प्यार का इज़हार ज़रूरी तो नहीं..!!

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