छोड़ कर ऐसे गया है छोड़ने वाला मुझे
दोस्तो उसने कहीं का भी नहीं छोड़ा मुझे,
बोलबाला इस क़दर ख़ामोशियों का है यहाँ
काटने को दौड़ता है मेरा ही कमरा मुझे,
हाँ वही तस्वीर जो खींची थी मैंने साथ में
हाँ वही तस्वीर कर जाती है अब तन्हा मुझे,
बात तो ये बा’द की है कुछ बनूँगा या नहीं
कूज़ागर तू चाक पे तो रक़्स करवाता मुझे,
बस इसी उम्मीद पे होता गया बर्बाद मैं
गर कभी बिखरा तो आ कर तू सँभालेगा मुझे,
आठवीं शब भी महज़ कुछ घंटों की मेहमान है
गर मनाना होता तो अब तक मना लेता मुझे..!!
~अक्स समस्तीपुरी