ज़ीस्त उनवान तेरे होने का

zist unwan tere hone ka

ज़ीस्त उनवान तेरे होने का दिल को ईमान तेरे होने का, मुझ को हर सम्त ले के जाता

हम ने जिस के लिए फूलों के जहाँ छोड़े हैं

hum ne jis ke liye

हम ने जिस के लिए फूलों के जहाँ छोड़े हैं उस ने इस दिल में फ़क़त ज़ख़्म ए

ज़र्द मौसम के एक शजर जैसी

zard mausam ke ek sazar jaisi

ज़र्द मौसम के एक शजर जैसी सारी बस्ती है मेरे घर जैसी, जब बिगड़ता है वक़्त इंसाँ का

ख़त्म है बादल की जब से साएबानी धूप में

khatm hai baadal ki jab se

ख़त्म है बादल की जब से साएबानी धूप में आग होती जा रही है ज़िंदगानी धूप में, चाँद

चेहरा देखें तेरे होंठ और पलकें देखें

chehra dekhen tere honth

चेहरा देखें तेरे होंठ और पलकें देखें दिल पे आँखें रखे तेरी साँसें देखें, सुर्ख़ लबों से सब्ज़

एक हवेली हूँ उस का दर भी हूँ

ek haveli hoon us

एक हवेली हूँ उस का दर भी हूँ ख़ुद ही आँगन ख़ुद ही शजर भी हूँ, अपनी मस्ती

कुछ ज़रूरत से कम किया गया है

kuch zarurat se kam

कुछ ज़रूरत से कम किया गया है तेरे जाने का ग़म किया गया है, ता क़यामत हरे भरे

जुदाई रूह को जब इश्तिआल देती है

judaai rooh ko jab

जुदाई रूह को जब इश्तिआल देती है ख़ुनुक हवा भी बदन को उबाल देती है, अगर हो वक़्त

दिल है सहरा से कुछ उदास बहुत

dil hai sahra se

दिल है सहरा से कुछ उदास बहुत घर को वीराँ करूँ तो घास बहुत, रोब पड़ जाए इस

अब रहा क्या जो लुटाना रह गया

ab raha kya jo

अब रहा क्या जो लुटाना रह गया ज़िंदगी का एक ताना रह गया, एक तअल्लुक़ जिन से था