वल्लाह किस जुनूँ के सताए हुए हैं लोग

vallah kis junoon ke sataye hue hai log

वल्लाह किस जुनूँ के सताए हुए हैं लोग हमसाए के लहू में नहाए हुए हैं लोग, ये तिश्नगी

न महलों की बुलंदी से न लफ़्ज़ों के नगीने से

na mahlon ki bulandi se na lafzon ke nagine se

न महलों की बुलंदी से न लफ़्ज़ों के नगीने से तमद्दुन में निखार आता है ‘घीसू’ के पसीने

ये समझते हैं खिले हैं तो फिर बिखरना है

ye samjhte hain khile hai to fir bikhrana hai

ये समझते हैं खिले हैं तो फिर बिखरना है पर अपने ख़ून से गुलशन में रंग भरना है,

अचेतन मन में प्रज्ञा कल्पना की लौ जलाती है

achetan man me pragya kalpana kee lau jalaati hai

अचेतन मन में प्रज्ञा कल्पना की लौ जलाती है सहज अनुभूति के स्तर में कविता जन्म पाती है

दोस्तो! अब और क्या तौहीन होगी रीश की

doston ab aur kya tauheen hogi reesh kee

दोस्तो! अब और क्या तौहीन होगी रीश की ब्रेसरी के हुक पे ठहरी चेतना रजनीश की, योग की

जिसके सम्मोहन में पागल, धरती है, आकाश भी है

jiske sammohan me pagal dharti hai aakash bhi hai

जिसके सम्मोहन में पागल, धरती है, आकाश भी है एक पहेली सी से दुनिया, गल्प भी है, इतिहास

इंद्रधनुषी रंग में महकी हुई तहरीर है

indradhanushi rang me mahki hui tahrir hai

इंद्रधनुषी रंग में महकी हुई तहरीर है अमृता की शायरी एक बोलती तस्वीर है, टूटते रिश्तों की तल्ख़ी

वामपंथी सोच का आयाम है नागार्जुन

vaampanthi soch ka aayaam hai nagarjun

वामपंथी सोच का आयाम है नागार्जुन ज़िंदगी में आस्था का नाम है नागार्जुन, ग्रामगंधी सर्जना, उसमें जुलाहे का

नीलोफ़र, शबनम नहीं, अँगार की बातें करो

nilofar shabnam nahi angaar kee baaten karo

नीलोफ़र, शबनम नहीं, अँगार की बातें करो वक़्त के बदले हुए मेयार की बातें करो, भाप बन सकती

भुखमरी की ज़द में है या दार के साये में है

bhookhmari kee zad me hai yaa daar ke saaye me hai

भुखमरी की ज़द में है या दार के साये में है अहले हिंदुस्तान अब तलवार के साये में