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Political Poetry

भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ ?

bhookh hai to sabr kar roti nahi to kya hua

भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ ? आजकल दिल्ली में है ज़ेर ए बहस …

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परिन्दे अब भी पर तोले हुए हैं…

parinde ab bhi par tole hue hai

परिन्दे अब भी पर तोले हुए हैं हवा में सनसनी घोले हुए हैं, तुम्हीं कमज़ोर पड़ते जा रहे …

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कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं…

kaise manzar samne aane lage hai

कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं, अब तो इस तालाब का पानी …

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हकीक़त में नहीं कुछ भी दिखा है…

haqiqat me nahi kuch bhi dikha hai

हकीक़त में नहीं कुछ भी दिखा है क़िताबो में मगर सब कुछ लिखा है, मुझे समझा के वो …

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बसा बसाया शहर अब बंजर लग रहा है…

basa basaya shahar ab banzar lag raha hai

बसा बसाया शहर अब बंजर लग रहा है चारो ओर उदासियो का मंज़र लग रहा है, जाने अंजाने …

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बदन पे जिसके शराफ़त का पैरहन देखा…

badan pe jiske sharafat ka pairahan dekha

बदन पे जिसके शराफ़त का पैरहन देखा वो आदमी भी यहाँ हमने बदचलन देखा, ख़रीदने को जिसे कम …

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एक दिन मुल्क के हर घर में उजाला होगा…

ek din mulq ke har ghar me ujala hoga

एक दिन मुल्क के हर घर में उजाला होगा हर शख्स यहाँ सबका भला चाहने वाला होगा, इंसानों …

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वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है…

wahi taaz hai wahi takht hai wahi zahar hai

वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है ये वही ख़ुदा की ज़मीन है …

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अज़ब ही मेरे मुल्क की कहानी है…

अज़ब ही मेरे मुल्क

अज़ब ही मेरे मुल्क की कहानी है यहाँ सस्ता खून पर महँगा पानी है, खिले है फूल कागज़ …

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आवाम भूख से देखो निढाल है कि नहीं ?

आवाम भूख से देखो

आवाम भूख से देखो निढाल है कि नहीं ? हर एक चेहरे से ज़ाहिर मलाल है कि नहीं …

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तुझे पुकारा है बे

तुझे पुकारा है बे इरादा

फिर हरीफ़ ए बहार

फिर हरीफ़ ए बहार हो बैठे

हर सम्त परेशाँ तिरी

हर सम्त परेशाँ तिरी आमद के क़रीने

सोच बदल जाती है

सोच बदल जाती है,हालात बदल जाते हैं

उजड़े हुए हड़प्पा के

उजड़े हुए हड़प्पा के आसार की तरह

निगाह ए यार के

निगाह ए यार के बदलने में कुछ देर नहीं लगती

कोई सुनता ही नहीं

कोई सुनता ही नहीं किस को सुनाने लग जाएँ

जानता हूँ कि तुझे

जानता हूँ कि तुझे साथ तो रखते है कई

मेरे उसके दरमियाँ ये

मेरे उसके दरमियाँ ये राब्ता है और बस

चल निकलती हैं ग़म

चल निकलती हैं ग़म ए यार से बातें क्या क्या

ऐसा है कि सब ख़्वाब

ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते

अब तक यही सुना

अब तक यही सुना था कि बाज़ार बिक गए

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तुझे पुकारा है बे

तुझे पुकारा है बे इरादा

फिर हरीफ़ ए बहार

फिर हरीफ़ ए बहार हो बैठे

हर सम्त परेशाँ तिरी

हर सम्त परेशाँ तिरी आमद के क़रीने