दोस्ती का फ़रेब ही खाएँ
दोस्ती का फ़रेब ही खाएँ आओ काग़ज़ की नाव तैराएँ, हम अगर रहरवी का अज़्म करें मंज़िलें खिंच
General Poetry
दोस्ती का फ़रेब ही खाएँ आओ काग़ज़ की नाव तैराएँ, हम अगर रहरवी का अज़्म करें मंज़िलें खिंच
आया है हर चढ़ाई के बाद एक उतार भी पस्ती से हम कनार मिले कोहसार भी, आख़िर को
नक़ाब ए रुख़ उठाया जा रहा है घटा में चाँद आया जा रहा है, ज़माने की निगाहों में
जब से वो मुझे भुलाये जा रही है कोई बला मेरा दिल खाए जा रही है, एक उम्र
ये दिल बे इख़्तियार ओ बे इरादा खेलता रहता है ख़िरद के हुक्म पर दिल की इताअत कौन
फ़लक पे चाँद के हाले भी सोग करते हैं जो तू नहीं तो उजाले भी सोग करते हैं,
दिल होश से बेगाना बेगाने को क्या कहिए चुप रहना ही बेहतर है दीवाने को क्या कहिए कुछ
मेरी आँखों के समुंदर में जलन कैसी है आज फिर दिल को तड़पने की लगन कैसी है ?
कैसा मफ़्तूह सा मंज़र है कई सदियों से मेरे क़दमों पे मेरा सर है कई सदियों से, ख़ौफ़
किस क़दर ज़ुल्म ढाया करते थे ये जो तुम भूल जाया करते थे, किस का अब हाथ रख