दोस्ती का फ़रेब ही खाएँ

dosti ka fareb hi khaaye aao kagaz ki

दोस्ती का फ़रेब ही खाएँ आओ काग़ज़ की नाव तैराएँ, हम अगर रहरवी का अज़्म करें मंज़िलें खिंच

आया है हर चढ़ाई के बाद एक उतार भी

aaya hai har chadhaai ke baad ek uttar bhi

आया है हर चढ़ाई के बाद एक उतार भी पस्ती से हम कनार मिले कोहसार भी, आख़िर को

नक़ाब ए रुख़ उठाया जा रहा है

naqab e rookh uthaya jaa raha hai

नक़ाब ए रुख़ उठाया जा रहा है घटा में चाँद आया जा रहा है, ज़माने की निगाहों में

एक उम्र गुजारी है जिसके साये में

ek umr guzari hai jiske saaye me

जब से वो मुझे भुलाये जा रही है कोई बला मेरा दिल खाए जा रही है, एक उम्र

ये दिल बे इख़्तियार ओ बे इरादा खेलता रहता है

ye dil be ikhtiyar o be irada khelta rahta hai

ये दिल बे इख़्तियार ओ बे इरादा खेलता रहता है ख़िरद के हुक्म पर दिल की इताअत कौन

फ़लक पे चाँद के हाले भी सोग करते हैं

falaq pe chaand ke haale bhi sog karte hain

फ़लक पे चाँद के हाले भी सोग करते हैं जो तू नहीं तो उजाले भी सोग करते हैं,

दिल होश से बेगाना बेगाने को क्या कहिए

dil hosh se begana begane ko kya

दिल होश से बेगाना बेगाने को क्या कहिए चुप रहना ही बेहतर है दीवाने को क्या कहिए कुछ

मेरी आँखों के समुंदर में जलन कैसी है

meri aankhon ke samndar me jalan kaisi hai

मेरी आँखों के समुंदर में जलन कैसी है आज फिर दिल को तड़पने की लगन कैसी है ?

कैसा मफ़्तूह सा मंज़र है कई सदियों से

kaisa maftooh saa manzar hai

कैसा मफ़्तूह सा मंज़र है कई सदियों से मेरे क़दमों पे मेरा सर है कई सदियों से, ख़ौफ़

किस क़दर ज़ुल्म ढाया करते थे

kis qadar zulm dhaya karte the

किस क़दर ज़ुल्म ढाया करते थे ये जो तुम भूल जाया करते थे, किस का अब हाथ रख