ज़िक्र उस परीवश का और फिर…

ziqr us pariwash ka aur fir bayan uska

ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयां अपना बन गया रकीब आख़िर था जो राज़दां अपना, मय वो

हुस्न ए मह गरचे बहंगाम ए कमाल अच्छा है

husn e mah garche

हुस्न ए मह गरचे बहंगाम ए कमाल अच्छा है उससे मेरा मह ए ख़ुर्शीद जमाल अच्छा है, बोसा

घर जब बना लिया तेरे दर पर कहे बग़ैर…

घर जब बना लिया

घर जब बना लिया तेरे दर पर कहे बग़ैर जानेगा अब भी तू न मेरा घर कहे बग़ैर,

हुस्न ए मह गरचे ब हंगाम ए कमाल अच्छा है…

husn e mah garche ba hungam kamal achcha hai

हुस्न ए मह गरचे ब हंगाम ए कमाल अच्छा है उससे मेरा मह ए ख़ुर्शीद ज़माल अच्छा है,

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले…

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हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले,

बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी ये डराता है मुझे…

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बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी ये डराता है मुझे साया-ए-शाख़-ए-गुल अफ़ई नज़र आता है मुझे, जौहर-ए-तेग़ ब-सर-चश्म-ए-दीगर मालूम हूँ

क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना…

क़यामत है कि सुन लैला

क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना तअ’ज्जुब से वो बोला यूँ भी होता है ज़माने

तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो…

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तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो मुझ को भी पूछते रहो तो क्या गुनाह हो

नहीं कि मुझको क़यामत का ए’तिक़ाद नहीं…

नहीं कि मुझको क़यामत

नहीं कि मुझको क़यामत का ए’तिक़ाद नहीं शब-ए-फ़िराक़ से रोज़-ए-जज़ा ज़ियाद नहीं, कोई कहे कि शब-ए-मह में क्या

नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच…

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नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच अगर शराब नहीं इंतिज़ार-ए-साग़र खींच, कमाल-ए-गर्मी-ए-सई-ए-तलाश-ए-दीद न पूछ ब-रंग-ए-ख़ार मिरे आइने से