ज़िक्र उस परीवश का और फिर…
ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयां अपना बन गया रकीब आख़िर था जो राज़दां …
ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयां अपना बन गया रकीब आख़िर था जो राज़दां …
हुस्न ए मह गरचे बहंगाम ए कमाल अच्छा है उससे मेरा मह ए ख़ुर्शीद जमाल …
घर जब बना लिया तेरे दर पर कहे बग़ैर जानेगा अब भी तू न मेरा …
हुस्न ए मह गरचे ब हंगाम ए कमाल अच्छा है उससे मेरा मह ए ख़ुर्शीद …
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर …
बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी ये डराता है मुझे साया-ए-शाख़-ए-गुल अफ़ई नज़र आता है मुझे, जौहर-ए-तेग़ …
क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना तअ’ज्जुब से वो बोला यूँ भी …
तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो मुझ को भी पूछते रहो तो …
नहीं कि मुझ को क़यामत का ए’तिक़ाद नहीं शब-ए-फ़िराक़ से रोज़-ए-जज़ा ज़ियाद नहीं, कोई कहे …
नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच अगर शराब नहीं इंतिज़ार-ए-साग़र खींच, कमाल-ए-गर्मी-ए-सई-ए-तलाश-ए-दीद न पूछ ब-रंग-ए-ख़ार …