तअल्लुक़ तर्क करने से मोहब्बत कम…
तअल्लुक़ तर्क करने से मोहब्बत कम नहीं होती भड़कती है ये आतिश दिन ब दिन …
तअल्लुक़ तर्क करने से मोहब्बत कम नहीं होती भड़कती है ये आतिश दिन ब दिन …
हक़ीक़तों में बदलता सराब चुभने लगा जो बन सका न हक़ीक़त वो ख़्वाब चुभने लगा, …
होंठों पे उसके जुम्बिश ए इंकार भी नहीं आँखों में कोई शोख़ी ए इक़रार भी …
ग़ैरत ए इश्क़ सलामत थी अना ज़िंदा थी वो भी दिन थे कि रह ओ …
मौसम बदल गए ज़माने बदल गए लम्हों में दोस्त बरसों पुराने बदल गए, दिन भर …
सफ़र ए वफ़ा की राह में मंज़िल जफा की थी कागज़ का घर बना के …
बैठे हैं चैन से कहीं जाना तो है नहीं हम बे घरों का कोई ठिकाना …
आपकी याद आती रही रात भर चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर, गाह जलती हुई …
बे नियाज़ी के सिलसिले में हूँ मैं कहाँ अब तेरे नशे में हूँ, हिज्र तेरा …
देख लेते हैं अब उस बाम को आते जाते ये भी आज़ार चला जाएगा जाते …