बच्चे की ज़िद को अब तो मेरा एतिबार दे
बच्चे की ज़िद को अब तो मेरा एतिबार दे ऐ आसमाँ ये चाँद मेरे घर उतार दे, चोरी
Love Poetry
बच्चे की ज़िद को अब तो मेरा एतिबार दे ऐ आसमाँ ये चाँद मेरे घर उतार दे, चोरी
ता हद्द ए नज़र कोई भी दम साज़ नहीं है या फिर मेरी चीख़ों में ही आवाज़ नहीं
चराग़ों से हवाएँ लड़ रही हैं कि ख़ुद बच्चों से माएँ लड़ रही हैं, नशेमन तो उजाड़े थे
उसे हम याद आते हैं फक़त फ़ुर्सत के लम्हों में मगर ये बात भी सच है उसे फ़ुर्सत
वो मुहब्बत भी मौसम की तरह निभाता है कभी बरसता है कभी बूँद बूँद को तरसाता है, पल
दिल ग़म ए रोज़गार से निकला किस घने ख़ारज़ार से निकला, हम-सफ़र हो गए मह ओ अंजुम मैं
मुझ को सज़ा ए मौत का धोका दिया गया मेरा वजूद मुझ में ही दफ़ना दिया गया, बोलो
मेज़ चेहरा किताब तन्हाई बन न जाए अज़ाब तन्हाई, कर रहे थे सवाल सन्नाटे दे रही थी जवाब
सदाक़त का जो पैग़म्बर रहा है वो अब सच बोलने से डर रहा है, कहानी हो रही है
होश वालों को ख़बर क्या बे ख़ुदी क्या चीज़ है इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है,