ये है तो सब के लिए हो ये ज़िद हमारी है
ये है तो सब के लिए हो ये ज़िद हमारी है इस एक बात पे दुनिया से जंग
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ये है तो सब के लिए हो ये ज़िद हमारी है इस एक बात पे दुनिया से जंग
कुछ यादगार ए शहर ए सितमगर ही ले चलें आए हैं उस की गली में तो पत्थर ही
ज़ाब्ते और ही मिस्दाक़ पे रखे हुए हैं आजकल सिदक़ ओ सफ़ा ताक़ पे रखे हुए हैं, वो
कितनी सदियाँ ना रसी की इंतिहा में खो गईं बे जहत नस्लों की आवाज़ें ख़ला में खो गईं,
जो होगा सब ठीक होगा होने दो जो होना है मुँह देखे की बातें है सब किस ने
फिर आईना ए आलम शायद कि निखर जाए फिर अपनी नज़र शायद ताहद्द ए नज़र जाए, सहरा पे
नसीब आज़माने के दिन आ रहे हैं क़रीब उन के आने के दिन आ रहे हैं, जो दिल
हँसी में हक़ जता कर घर जमाई छीन लेता है मेरे हिस्से की टूटी चारपाई छीन लेता है,
दरख्तों से गिरे सूखे हुए पत्ते भी ये इक़रार करते हैं जिन्हें कल तक मुहब्बत थी वो अब
ज़ख़्मों को रफ़ू कर लें दिल शाद करें फिर से ख़्वाबों की कोई दुनिया आबाद करें फिर से,