आपकी याद आती रही रात भर
आपकी याद आती रही रात भर चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर, गाह जलती हुई गाह बुझती हुई
Faiz Ahmad Faiz
आपकी याद आती रही रात भर चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर, गाह जलती हुई गाह बुझती हुई
दरबार ए वतन में जब एक दिन सब जाने वाले जाएँगे कुछ अपनी सज़ा को पहुँचेंगे,कुछ अपनी जज़ा
वफ़ा ए वादा नहीं वादा ए दिगर भी नहीं वो मुझसे रूठे तो थे लेकिन इस क़दर भी
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के वो जा रहा है कोई शब ए ग़म गुज़ार के, वीराँ
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले, क़फ़स उदास है यारो
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार केवो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के, वीराँ है मय-कदा ख़ुम-ओ-साग़र