कहीं पे सूखा कहीं चारों सिम्त पानी है
कहीं पे सूखा कहीं चारों सिम्त पानी है गरीब लोगों पे क़ुदरत की मेहरबानी है, …
कहीं पे सूखा कहीं चारों सिम्त पानी है गरीब लोगों पे क़ुदरत की मेहरबानी है, …
फूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसे और इस दिल की तरफ़ बरसे तो पत्थर …
सावन को ज़रा खुल के बरसने की दुआ दो हर फूल को गुलशन में महकने …
बारिश की बरसती बूँदों ने जब दस्तक दी दरवाज़े पर महसूस हुआ तुम आये हो, …
फिर झूम उठा सावन फिर काली घटा छाई फिर दर्द ने करवट ली फिर याद …
ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहींतू ने मुझ को खो दिया …
पलकों को तेरी शर्म से झुकता हुआ मैं देखूँधड़कन को अपने दिल की रुकता हुआ …