तेरे उकताते हुए लम्स से महसूस हुआ
अब बिछड़ने का तेरे वक़्त हुआ चाहता है,
अजनबियत तेरे लहज़े की पता देती है
तू खफ़ा है तो नहीं, हाँ पर होना चाहती है,
मेरी तोहमत न लगे तुझ पे सो मैं दूर हुआ
मुझसे बढ़कर तेरा अब कौन भला चाहता है,
मैं कि ख़ुद को भी कोई फैज़ कभी दे न सका
और तू है कि फ़क़त मुझसे सिला चाहती है,
तू मुझसे रोज़ मिले, मिलता रहे, मिलता रहे
मैं कहूँ या न कहूँ दिल तो मेरा चाहता है,
तू तो मुझ तालिब ए गम शख्स पे हैरान न हो
दिल बड़ा है ना, सो ये गम भी बड़ा चाहता है,
सब कहे हमने तुझे चाहा, तू देखे मेरे सिम्त
और इशारे से कहे सबसे जुदा चाहता है..!!