किसी का दिखावे का प्यार नहीं
बेलौस मुफ़्लिसी भी है क़ुबूल मुझेमगर अमीर ए शहर बदकार नहीं, दुश्मन ए बदतर से भी निभा लूँगामगर
बेलौस मुफ़्लिसी भी है क़ुबूल मुझेमगर अमीर ए शहर बदकार नहीं, दुश्मन ए बदतर से भी निभा लूँगामगर
तड़पता हूँ मैं लैल ओ नहारलम्हा भर वो भी तड़पती होगी दुआओं में वो भी ख़ुदा सेकोई फ़रियाद
रूबरू हो कर भी इस ज़माने मेंकिसी पे ऐतबार कहाँ करते है लोग ? मतलबपरस्तो की इस दुनियाँ
इन्सान हूँ इंसानियत की तलब हैकिसी खुदाई का तलबगार नहीं हूँ, ख़ुमारी ए दौलत ना शोहरत का नशाअबतक
अपनी खताओ पे शर्मिन्दा भी हो जाता हूँमुझे तुम्हारी तरह बहाने बनाना नहीं आता, गर हूँ ख़तावार तो
चाहते है इज्ज़त ओ मुक़ाम ए बलंदी तोसर को खालिक़ के आगे झुका लीजिए, गर है ख्वाहिश पाने
कइयो ने कोशिश कर लीकई और मिटाने में लगे है, सदियों से ज़ालिम ज़माने वालेनारियो को गिराने में
हसरत ए दीद ओ वस्ल लिए ख्याल मेरातेरे हुस्न ए ख्वाबीदा से जब टकराता है, ख्वाहिश ए जानाँ
वाह ! रे सियासत ए हिंदुस्तानतुझे दाँव पेच का खेल क्या कमाल आता है, यूँ तो रहा करते
मुफ़्लिस हो कि रईसए शहरकोईख़ुदा की नज़र में एक सा हर बशर होता है, इबादत हो के प्रार्थना