अपनी ख़बर, न उस का पता है, ये इश्क़ है
जो था, नहीं है, और न था, है, ये इश्क़ है,
पहले जो था, वो सिर्फ़ तुम्हारी तलाश थी
लेकिन जो तुम से मिल के हुआ है, ये इश्क़ है,
तश्कीक है, न जंग है माबैन ए अक़्ल ओ दिल
बस ये यक़ीन है कि ख़ुदा है, ये इश्क़ है,
बेहद ख़ुशी है, और है बेइंतिहा सुकून
अब दर्द है, न ग़म, न गिला है, ये इश्क़ है,
क्या रम्ज़ जाननी है तुझे अस्ल ए इश्क़ की ?
जो तुझ में उस बदन के सिवा है, ये इश्क़ है,
शोहरत से तेरी ख़ुश जो बहुत है, ये है ख़िरद
और ये जो तुझ में तुझ से ख़फ़ा है, ये इश्क़ है,
ज़ेर ए क़बा जो हुस्न है, वो हुस्न है ख़ुदा
बंद ए क़बा जो खोल रहा है, ये इश्क़ है,
इदराक की कमी है समझना इसे मरज़
इस की दुआ, न इस की दवा है, ये इश्क़ है,
शफ़्फ़ाफ़ ओ साफ़, और लताफ़त में बेमिसाल
सारा वजूद आईना सा है, ये इश्क़ है,
यानी कि कुछ भी इस के सिवा सूझता नहीं ?
हाँ तो जनाब, मसअला क्या है? ये इश्क़ है,
जो अक़्ल से बदन को मिली थी, वो थी हवस
जो रूह को जुनूँ से मिला है, ये इश्क़ है,
इस में नहीं है दख़्ल कोई ख़ौफ़ ओ हिर्स का
इस की जज़ा, न इस की सज़ा है, ये इश्क़ है,
सज्दे में है जो महव ए दुआ वो है बे दिली
ये जो धमाल डाल रहा है, ये इश्क़ है,
होता अगर कुछ और तो होता अना परस्त
उस की रज़ा शिकस्त ए अना है, ये इश्क़ है,
इरफ़ान मानने में तअम्मुल तुझे ही था
मैं ने तो ये हमेशा कहा है, ये इश्क़ है..!!
~इरफ़ान सत्तार

























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