अचेतन मन में प्रज्ञा कल्पना की लौ जलाती है

अचेतन मन में प्रज्ञा कल्पना की लौ जलाती है
सहज अनुभूति के स्तर में कविता जन्म पाती है

उठाता पाँव है विज्ञान संशय के अँधेरे में
अचानक उस अँधेरे में ही बिजली कौंध जाती है

अदम इस सभ्यता के पास देने को नहीं कुछ अब
जो ये संतप्त मानव के लिए पेशाब लाती है..!!

~अदम गोंडवी

दोस्तो! अब और क्या तौहीन होगी रीश की

Leave a Reply