अब बेवजह बेसबब दिन को रात नहीं करता

अब बेवजह बेसबब दिन को रात नहीं करता
फ़ुर्सत मिले भी तो किसी से बात नहीं करता,

वक़्त, ऐतबार, ख़ुलूस, वफ़ा के दावेदारों को
सुपुर्द सब कर देता हूँ अपनी ज़ात नहीं करता,

लहज़ा नरम रख कर मिलता हूँ आजिज़ी के साथ
मगर हर फ़र्द पे जाया सब जज़्बात नहीं करता,

तजलील ए मुहब्बत है बेहिसों से मुहब्बत करना
पत्थरों पे अयाँ अपने एहसासात नहीं करता,

हार जाता हूँ सब से ही अब जान बुझ कर
मैं किसी के नसीब में अब मात नहीं करता..!!

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