आसमानों से न उतरेगा सहीफ़ा कोई

आसमानों से न उतरेगा सहीफ़ा कोई
ऐ ज़मीं ढूँढ ले अब अपना मसीहा कोई,

फिर दर ए दिल पे किसी याद ने दस्तक दी है
फिर बहा कर मुझे ले जाएगा दरिया कोई,

ये तो महफ़िल न हुई मक़्तल ए एहसास हुआ
आइना दे के मुझे ले गया चेहरा कोई,

कितने वीरान हैं यादों के दर ओ बाम न पूछ
भूल कर भी इधर आया न परिंदा कोई,

मैं इस आसेबज़दा शहर में किस से पूछूँ ?
क्यूँ मेंरे पीछे लगा रहता है साया कोई ?

माँगता है मिरे आमाल का हर रोज़ हिसाब
कैफ़ जो मुझ में रहा करता है मुझ सा कोई..!!

~इंद्र मोहन मेहता कैफ़

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