आरज़ू को दिल ही दिल में घुट के रहना आ गया
और वो ये समझे कि मुझ को रंज सहना आ गया,
पूछता कोई नहीं अब मुझ से मेरा हाल ए दिल
शायद हाल ए दिल अब मुझ को कहना आ गया,
सब की सुनता जा रहा हूँ और कुछ कहता नहीं
वो ज़बाँ हूँ अब जिसे दाँतों में रहना आ गया,
ज़िंदगी से क्या लड़ें जब कोई भी अपना नहीं
हो के लहरों के रुख़ पर हम को बहना आ गया,
लाख पर्दे इज़्तिराब ए शौक़ पर डाले मगर
फिर वो एक मचला हुआ आँसू बरहना आ गया,
पी के आँसू सी के लब बैठा हूँ यूँ तेरे बज़्म में
दर हक़ीक़त जैसे मुझको रंज सहना आ गया,
एक ना शुक्र ए चमन को रंग ओ बू देता रहा
आ गया हाँ आ गया काँटों में रहना आ गया,
लब पे नग़्मा और रुख़ पर एक तबस्सुम की नक़ाब
अपने दिल का दर्द अब हमको तो कहना आ गया..!!