आँख से आँख मिलाता है कोई

आँख से आँख मिलाता है कोई
दिल को खींचे लिए जाता है कोई,

वाए हैरत कि भरी महफ़िल में
मुझ को तन्हा नज़र आता है कोई,

सुब्ह को ख़ुनुक फ़ज़ाओं की क़सम
रोज़ आ आ के जगाता है कोई,

मंज़र ए हुस्न ए दो आलम के निसार
मुझ को आईना दिखाता है कोई,

चाहिए ख़ुद पे यक़ीन ए कामिल
हौसला किस का बढ़ाता है कोई,

सब करिश्मात ए तसव्वुर हैं शकील
वर्ना आता है न जाता है कोई..!!

~शकील बदायूनी

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